HSN अतुल अग्रवाल
हल्द्वानी



देहरादून/ हल्द्वानी,,,,,,उत्तराखंड में हाईकोर्ट ने दिया ऐसा झटका है जो सीधे प्रदेश के लगभग डेढ़ लाख लोगों की छतों पर आ गिरा है। प्रदेश में नजूल भूमि एक ऐसी सरकारी ज़मीन, जो कभी रियासतों की हुआ करती थी। आज़ादी के बाद ये जमीन सरकार के कब्ज़े में आई और समय के साथ इस पर कई बस्तियां, मोहल्ले और कॉलोनियां बसती चली गईं,,,,,

राज्य सरकार ने 2009 में नजूल नीति लाकर कोशिश की कि जो लोग दशकों से इस ज़मीन पर रह रहे हैं, उन्हें मालिकाना हक़ मिल जाए। एक तय शुल्क लेकर इन लोगों को ‘फ्री होल्ड’ के तहत ज़मीन का मालिक बना दिया गया। लोगों ने पैसे दिए, स्वामित्व मिला, लेकिन फिर मामला पहुंचा हाईकोर्ट और वहीं से शुरू हुआ कानूनी पेंच।
वर्ष 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने नजूल भूमि पर फ्री होल्ड की नीति को ही असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट ने कहा “सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जे को मालिकाना हक़ नहीं दिया जा सकता,,,,

झटका बड़ा था करीब 8000 से ज़्यादा परिवार, जो ज़मीन को फ्री होल्ड करवा चुके थे, उनकी नींव हिल गई।
राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और दिसंबर 2021 में स्टे मिल गया। मामला पेंडिंग था, लेकिन सरकार ने इसे एक मौके की तरह देखा और 2021 में नजूल नीति को दोबारा लागू कर दिया। बिना सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के।
नीति 1 साल के लिए लागू की गई, फिर इसकी मियाद बढ़ती रही और फ्री होल्ड की प्रक्रिया बेरोकटोक चलती रही।
इसके बाद 16 अप्रैल 2025 नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने साफ-साफ कहा नजूल भूमि का फ्री होल्ड अब बंद!
शासन को तुरंत आदेश मिला, और सरकार ने उसी दिन सभी मंडलायुक्तों और डीएम को निर्देश भेज दिए “कोई भी फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा।”
यहां मुद्दा सिर्फ जमीन का नहीं है ये सवाल है एक भरोसे का!

उत्तराखंड में जमीन से जुड़ा सबसे बड़ा मुद्दा एक बार फिर तूल पकड़ चुका है। सरकार की नजूल नीति, जो हज़ारों लोगों की उम्मीदों की बुनियाद बनी हुई थी, अब ध्वस्त होती नज़र आ रही है। नैनीताल हाईकोर्ट के ताज़ा आदेश के बाद सरकार ने नजूल भूमि को ‘फ्री होल्ड’ करने की प्रक्रिया पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। ये फैसला नहीं, बल्कि एक ऐसा झटका है जो सीधे प्रदेश के लगभग डेढ़ लाख लोगों की छतों पर आ गिरा,,,,
उत्तराखंड के देहरादून, नैनीताल, उधम सिंह नगर जैसे जिलों में करीब डेढ़ लाख लोग नजूल भूमि पर बसे हैं। कुछ ने लीज़ पर लिया, कुछ ने कब्जा किया, कुछ ने सरकार के भरोसे दस्तावेज़ बनाए। लेकिन अब अदालत की सख्ती के बाद उनका भविष्य फिर से अधर में लटक गया है।
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