उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय में महिलाओ को 30% क्षैतिज आरक्षण अधिनियम 2023 को चुनौती

उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय में महिलाओ को 30% क्षैतिज आरक्षण अधिनियम 2023 को चुनौती
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चयन प्रक्रिया वर्तमान रिट याचिका के अगले आदेशों के अधीन होगी। मामले को 4 जुलाई 2023 को अगली सुनवाई के लिए रखा गया है।
आरक्षण प्रदान करने के कारण 6 फरवरी 2023 के आदेश द्वारा याची की अभ्यर्थिता निरस्त की गई

संवाददाता अतुल अग्रवाल ”हालात-ए-शहर ” हल्द्वानी |

सरकार के आदेश पर उच्च न्यायालय ने 24 अगस्त 2022 के आदेश से रोक लगा दी थी। डोमिसाइल आधारित आरक्षण पर रोक के कारण, याचिकाकर्ता का प्रारंभिक परीक्षा में चयन हुआ है, क्या उसकी योग्यता अधिक थी ? दस जनवरी 2023 को उपरोक्त अधिनियम को राज्य विधानमंडल द्वारा अधिनियमित किया गया और उत्तराखंड राज्य में उत्तराखंड महिला के लिए डोमिसाइल आधारित आरक्षण को फिर से लागू किया गया है। उत्तराखण्ड उच्च न्यायलय ने आज राज्य की महिलाओ को फिर से 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले अधिनियम 2023 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद प्रतिवादियों को छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए और कहा कि चयन प्रक्रिया वर्तमान रिट याचिका के अगले आदेशों के अधीन होगी। मामले को 4 जुलाई 2023 के लिए रखा गया है।

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पुन: आरक्षण प्रदान करने के कारण 6 फरवरी 2023 के आदेश द्वारा याची की अभ्यर्थिता निरस्त की गई है। याचिकाकर्ता के वकील डॉ कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि उन्होंने उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी है कि उत्तराखंड राज्य के पास डोमिसाइल आधारित महिला आरक्षण प्रदान करने के लिए ऐसा कानून बनाने की कोई विधायी क्षमता नहीं है। इसके अलावा उन्होंने निवेदन किया है कि यह अधिनियम केवल उच्च न्यायालय के आदेश के प्रभाव को समाप्त करने के लिए लाया गया है, जो कि ‘वैधानिक अतिक्रमण’ के बराबर है और भारत के संविधान में इसकी अनुमति नहीं है।

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मामले के अनुसार याचिकाकर्ता आलिया के पास उत्तराखंड का डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं है। वो उत्तराखंड अपर पी.सी.एस.परीक्षा, 2021 में मेधावी होते हुए भी मात्र इसलिए अनुत्तीर्ण हो गई, क्योंकि 24 जुलाई 2006 के शासकीय आदेश से उत्तराखण्ड महिला वर्ग को मूल निवास आधारित आरक्षण दिया गया।

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यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 और 16 का उल्लंघन करता है। याची के अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने न्यायालय के सामने यह भी दलील दी है कि यह अधिनियम नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि यह एक संवैधानिक असंभवता है और विधानमंडल ऐसा करने में अक्षम है। न्यायालय ने प्रतिवादियों को छह सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि चयन प्रक्रिया वर्तमान रिट याचिका के अगले आदेशों के अधीन होगी। मामले को 4 जुलाई 2023 को अगली सुनवाई के लिए रखा गया है।