संवाददाता अतुल अग्रवाल ”HS NEWS ” हल्द्वानी | जानकारी के मुताबिक पूर्व में वन विभाग ने एच.एन.कॉलेज को जमीन लीज में दी थी, जिसमें एच.एन.कॉलेज ने दुकानों का निर्माण कर उन्हें किराए में दे दिया। इसे नियम विरुद्ध मानते हुए वन विभाग ने 18 मई 2023 को इन दुकानदारों को दुकानें खाली करने के निर्देश दिए थे। वन विभाग के इस नोटिस को डॉ.रूप बसन्त व 33 अन्य ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। लेकिन 9 जून को न्यायालय की एकलपीठ ने वन विभाग के नोटिस को सही ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी थी। जिसके खिलाफ डॉ.रूप बसन्त व अन्य ने मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ के समक्ष अपील दायर की थी।इसके बाद अगली सुनवाई सोमवार के लिए तय की है।
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उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने हल्द्वानी के एच.एन.इंटर कॉलेज परिसर में वनभूमि में बनी 40 से अधिक दुकानों को खाली करने के वन विभाग के नोटिस के खिलाफ दायर स्पेशल अपील पर सुनवाई करते हुए याचिका कर्ताओं से 19 जून सोमवार को 4 महीने के भीतर दुकान खाली करने के सम्बंध में ‘अंडरटेकिंग’ देने को कहा है। स्पेशल अपील की सुनवाई मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खण्डपीठ में हुई।
यदि बात की जाये पूर्व में भी नगर मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह को स्कूल प्रबंधक के द्वारा दुकानों में काबिज़ व्यापरियों \ किरायेदारों के द्वारा अवैध निर्माण शराब जुए को लेकर शिकायती देकर कार्यवाही करने की मांग की गई थी , जिसके पश्चात नगर मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह द्वारा मौके पर पहुँचकर अवैध निर्माणों को ध्वस्तिकरण करने की कार्यवाही करते हुए सख्त हिदायत दी गई थी की कोई भी अवैध निर्माण कार्य न किया जाये
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में हल्द्वानी के डॉ. रूप बसंत समेत 33 की याचिका पर सुनवाई की। जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए और बिना नोटिस के हटाया जा रहा है। सरकार की ओर से याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता जिस भूमि पर कब्जेदार हैं, वह वन विभाग की भूमि है। जिसे एचएन इंटर कॉलेज को लीज पर दिया गया था। यह लीज 1995 में खत्म हो गई।
याचिकाकर्ताओं को कॉलेज प्रबंधन ने भूमि का कुछ हिस्सा सबलेट किया था। जिसके बाद मूल कब्जेदार वन विभाग ने वर्ष 2000 में एचएन इंटर कॉलेज को पीपी एक्ट में बेदखली का नोटिस दिया था। खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं से साफ कहा कि मूल पट्टेदार के हक में ही भूमि नहीं है, लिहाजा याचिकाकर्ताओं का कानूनी हक नहीं है।
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