अखिलेश किस पर जताएंगे भरोसा यूपी विधानसभा में कौन होगा नेता प्रतिपक्ष

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विधानसभा 2022 के चुनावो में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के पश्चात उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के लिए योगी आदित्यनाथ का नाम तय है,

लेकिन प्रतिपक्ष का नेता कौन बनेगा यह तस्वीर साफ नहीं है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देने जा रहे हैं. ऐसे में प्रतिपक्ष के नेता के लिए सपा के कई दिग्गज रेस में हैं, लेकिन मुहर किस पर लगेगी ?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए योगी आदित्यनाथ का नाम लगभग तय माना जा रहा है. वहीं, समाजवादी पार्टी (सपा) भले ही सूबे की सत्ता में वापसी न कर पाई हो, लेकिन विधायकों की संख्या बढ़कर सौ के पार हो गई है. ऐसे में मुख्य विपक्षी दल सपा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव करहल विधानसभा से चुनाव जीते हैं, लेकिन चर्चा है कि वह विधायकी के बजाय सांसद रहना ही पसंद करेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि सदन में बीजेपी को घेरने के लिए सपा का चेहरा कौन होगा ? 
16वीं विधानसभा में नेता विपक्ष रहे सपा नेता रामगोविंद चौधरी बलिया की बांसडीह सीट से विधानसभा चुनाव हार गए हैं. ऐसे में अब अखिलेश यादव के पास विकल्प है कि वो खुद प्रतिपक्ष नेता बने, लेकिन वो विधायक के बजाय सांसद बने रहेंगे. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी सौंपने के लिए सपा को मशक्कत करनी पड़ रही है दरअसल सदन में नेता प्रतिपक्ष उसी को बनाने की चर्चा है जो अपनी बात रखने की काबिलियत भी रखता हो. हालांकि, सपा के कई दिग्गज नेता इस बार चुनाव जीतकर आए हैं. अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव जसंवतनगर से सपा के टिकट पर जीतकर आए हैं तो पार्टी के वरिष्ठ नेता भी विधायक बने हैं. विधानसभा अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पांडेय से लेकर अवधेश प्रसाद, रविदास मेहरोत्रा, ओम प्रकाश सिंह, शाहिद मंजूर, महबूब अली, दुर्गा यादव, रमाकांत यादव जैसे नेता भी विधायक बनकर सदन में पहुंचे हैं. 

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चुनाव से ठीक पहले बसपा छोड़कर सपा में आए कई वरिष्ठ नेता भी विधायक बनने में कामयाब रहे हैं. इनमें इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, राकेश पांडे त्रिभुवन दत्त जैसे नेता हैं. रामअचल राजभर और लालजी वर्मा बसपा के विधायक दल के नेता भी रह चुके हैं. ऐसे में अखिलेश यादव दलित और पिछड़ों की गोलबंदी के लिए सपा के पुराने नेताओं को नजरअंदाज कर बसपा से आए नेताओं पर दांव खेल सकते हैं.

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मायावती के बिखरते कुनबे को सपा की ओर मोड़ने में ये आयातित नेता सहायक हो सकते हैं. राम अचल, इंद्रजीत सरोज और लालजी वर्मा प्रखर वक्ता भी हैं और भी. राम गोविंद चौधरी के तीखे तेवरों की कमी भी पूरी हो सकती है. सपा के कई पुराने और वफादार नेता हैं, जो कड़े तेवर और संघर्षों वाले माने जाते है सदन में सरकार को जमकर घेरते रहे हैं. ऐसे लोग यदि विपक्ष के नेता बनते हैं तो बीजेपी सरकार की घेराबंदी तगड़े से कर सकेंगे. ऐसे में देखना है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव किस पर दांव खेलते हैं?

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