पार्टी नहीं अपना वर्चस्व बचाने के लिये भागमभाग पार्ट 2022 ?

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संवाददाता अतुल अग्रवाल – डिजिटल चैनल ” हालात-ए-शहर ” हल्द्वानी | सीधी बात नो ?? देश में प्रदेश में अक्सर नेताओं के द्वारा समय-समय पर लोकतंत्र की दुहाई देते हुए मंचों से खड़े होकर बड़े-बड़े बयान दिए जाते हैं | लोकतंत्र की दुहाई दी जाती है ,वहीं दूसरी ओर जैसे ही चुनावी बिगुल बजता है ,दल बदल की राजनीति परवान चढ़ने लगती है जो भी नेता पार्टी बदलता है , उसके द्वारा एक ही वक्तव्य दिया जाता है कि हम पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर पार्टी में आए कई ऐसे दिग्गज नेता भी हैं जोकि पार्टी में रहते हुए वर्षों तक एक ऊंचे पद पर विराजमान रहते हुए सत्ता की मलाई खाते हैं वहीं चुनाव आते ही अपनी पार्टी छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल होने के बाद एक बड़ा बयान देते हैं

हमारा पार्टी में दम घुट रहा था हमारा अपमान किया जा रहा था इसी कारण आज हमने पार्टी से किनारा करते हुए दूसरी पार्टी का दामन थामा है लेकिन वही देखा जाता है कि 5 वर्षों के पूर्व अगला चुनाव आते ही वही नेता फिर दलबदल की राजनीति करते हुए वही पुराना बयान दोहराते हैं , हमारा दम घुट रहा था और आज हमने यह कदम लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठाया है ,सबसे अहम सवाल यह है आम जनता सुबह से शाम तक लंबी-लंबी लाइनों में खड़े होकर अपनी ताकत अपने वोट से एक जनप्रतिनिधि को यह सोच कर चुनती है | कि जिस जनप्रतिनिधि को आज हम अपनी ताकत अपना अमूल्य वोट देकर कुर्सी तक पहुंचाते हैं कि यह जनप्रतिनिधि जनता के लिए समस्त क्षेत्रों में बेहतर कार्य करते हुए 5 वर्ष तक जनता हित के लिए कार्य करेगा , लेकिन वही देखने को मिलता है कि जनप्रतिनिधि के द्वारा सत्ता में काबिज होने के बाद वोटर को दरकिनार कर दिया जाता है ,केवल अपने वर्चस्व अपने रुतबे के लिए जनप्रतिनिधि सक्रिय दिखाई देते हैं ,

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यदि बात की जाए तो वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों का बिगुल बजते ही कई राष्ट्रीय पार्टियों के दिग्गज नेता रातों-रात पार्टी बदलते में लगे हैं ,साथ ही जनता को समझा रहे हैं कि हम लोकतंत्र की रक्षा करने जनता को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए यह कदम उठा रहे हैं ,परंतु पर्दे के पीछे का का सच कुछ और ही है चुनाव आते ही टिकट पाने की ख्वाहिशें लेकर पार्टी हाईकमान के समक्ष अपनी मजबूत दावेदारी पेश की जाती है | परंतु पार्टियां बहुत ही सोच समझकर विचार करने के बाद प्रत्याशियों का चयन करती है यह भी देखा जाता है कि किस जनप्रतिनिधि के द्वारा अपने क्षेत्र में जनता हित के लिए सर्वाधिक कार्य किए गए हैं | इसी के आधार पर एवं पार्टी को मजबूत बनाने के लिए बेहतर प्रत्याशियों का चयन किया जाता है

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इसी कड़ी में यदि किसी जनप्रतिनिधि को पार्टी टिकट नहीं देती है तो उसके पश्चात रूठने मनाने का एक सिलसिला चलता है यदि इसके बाद भी बात नहीं बनती है तो जनप्रतिनिधि पार्टी छोड़ने की चेतावनी तक देते हैं यदि पार्टी हाईकमान इस ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं उसका नतीजा जनप्रतिनिधि अपनी पार्टी छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं |

जनता का कहना है कि जो व्यक्ति अपनी पार्टी का ना हो सका वह जनता के लिए जनहित के कार्य कैसे करेगा वही जनता का यह भी आरोप है कि आज की राजनीति में जनप्रतिनिधियों के द्वारा पार्टी से अधिक अपने निजी स्वार्थों वर्चस्व को विशेष महत्व दिया जाता है ,आज की राजनीति केवल धनबल की राजनीति मात्र बनकर रह गई है ,जनता का यह भी आरोप है कि जब सत्ता में होते हैं तो जनता हितो के कोई कार्य नहीं करते परंतु सत्ता में काबिज रहने के लिए टिकट की दौड़ में या तो पार्टी पर दबाव बनाते हैं पार्टी से टिकट ना मिलने पर अन्य पार्टियों में शामिल हो जाते हैं

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वही जनता का यह भी कहना है कि क्या ऐसे दलबदलू नेताओं को वोट देना चाहिए क्या ऐसे नेताओं जनप्रतिनिधियों को जो कि केवल अपने वर्चस्व के लिए जनता के बीच पहुंचते हैं अपना जनप्रतिनिधि निधि चुनना चाहिए जनता का यह भी आरोप है कि आज की राजनीति व्यवसाय बन के रह गई है ऐसा कौन सा कारोबार ये करते हैं ,जो कि 5 वर्षों में करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर लेते हैं वही जनता का कहना है कि एक बार ऐसे जनप्रतिनिधियों को वोट ना देकर एहसास कराया जाए कि जो भी जनप्रतिनिधि या नेता दल बदल की राजनीति करेगा उसको जनता स्वीकार नहीं करेगी

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