
हालात-ए-शहर ( अतुल अग्रवाल ) हल्द्वानी | 2020 – 22 मार्च को देश के प्रधानमंत्री के द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के दस्तक से बचाव के लिए देश में 1 दिन का लॉक डाउन लगाया गया था लेकिन वही संक्रमण के आंकड़े बढ़ते गए और लॉकडाउन आगे बढ़ता गया जिसके कारण देश की लाइफ लाइन जैसी व्यापार शिक्षा कारोबार थम गई, वहीं दूसरी ओर करोड़ों परिवारों के समक्ष रोजी रोटी का संकट गहरा गया करोना के चलते बड़े-बड़े उद्योग कारोबार बंद कर दिए गए महानगरों से जनता ने कारोबार और नौकरी आ जाने के कारण अपने गृह निवास की ओर रुख करना शुरू कर दिया,






जिसको जैसा साधन मिला वैसे अपने घर पहुंचने के लिए चल पड़ा लेकिन वहीं दूसरी ओर लाखों लोग छोटे-छोटे बच्चों के साथ पैदल चलने के लिए कई सौ किलोमीटर चलने के लिए बाध्य हो गए ,सबसे बड़ा संकट जो आया वह गरीब व्यक्ति मजदूर के समक्ष आया लॉक डाउन के चलते कारोबार नहीं जेब में पैसा नहीं रोटी कहां सिखाएं ऐसे हालातों को देखते हुए कुछ सामाजिक संगठनों व्यापारियों अन्य व्यक्तियों के द्वारा करोड़ों परिवारों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई,


इससे भी बड़ी त्रासदी का सामना बेजुबान जानवरों को भी करना पड़ा बेजुबान जानवरो के भोजन की व्यवस्था के लिए कुछ सामाजिक संगठन मैदान में उतरे और उनके द्वारा बेजुबान जानवरों को भोजन हरा चारा खिलाने की मुहिम चलाई गई वहीं सरकार के द्वारा ऐसी विषम परिस्थितियों में लाखों रुपया अब मुक्त संबंधित विभागों को किया गया


लेकिन कुछ ऐसे भी मतलब परस्त निकले जिनके द्वारा मौके का फायदा उठाते हुए बेजुबान जानवरो को हरा चारा खिलाने के नाम पर राजनीति करने का अवसर प्राप्त हुआ राजनीति करना अखबारों में सुर्खियां बटोरना जारी रहा लेकिन बेजुबान जानवरों को हरा चारा खिलाने के नाम पर राजनीति करने वालों ने अपनी जेब ढीली ना कर बड़े-बड़े लोगों से संपर्क साधा बात की जाए तो बंदूक अपनी कंधा किसी और का निशाना तीसरी जगह इसी पद्धति को लेकर राजनीति की गई

आज पुनः फिर एक बार 2021 में करोना कि दूसरी लहर के चलते लॉक डाउन लगाया गया लेकिन इस लॉकडाउन में जानवरों को हरे चारे के नाम पर राजनीति करने के लिए स्थान वही जानवर वही लेकिन चेहरा नया आखिर कब तक समाज सेवा के नाम पर बेजुबान जानवरों को हरे चारे के नाम पर राजनीति कर समाचार पत्रों की सुर्खियां बटोरते रहेंगे यह एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है

आज के छूट भैय्या नेताओं पर समाज सेवा उसे कहते हैं किसी की भलाई करते वक्त उसका ढिंढोरा न पीटा जाए क्या आज राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि हम को सुर्खियों में बने रहने के लिए बेजुबान जानवरों का सहारा लेना पड़ रहा है


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