संवाददाता अतुल अग्रवाल > HS NEWS < हल्द्वानी | महानगर हलद्वानी काठगोदाम में विदेशी शिक्षा पद्दत्ति सन 1964 में स्थापना हुई अब आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि भारतीय संस्क्रति , गुरुकुलों को ध्वस्त करने का पडयंत्र आज़ादी के मात्र 17 वर्षो के पश्चात ही रचा गया यदि बात की जाए जब पश्चिमी सभ्यता विदेशी कल्चर की शिक्षा पद्दत्ति ने भारत वर्ष में पैर पसारने प्रारम्भ किये उस वक़्त इतनी महंगी शिक्षा ग्रहण कराना आम आदमी की पहुँच से बाहर होता था ,
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क्योकि उस वक़्त व्यक्ति की आय इतनी नही होती थी कि वह अपने बच्चों को इतने महंगे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाने की हिम्मत रखता हो , उस वक़्त जो बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते थे , वह या तो बड़े बड़े अधिकारियों या राजनेताओं के बच्चे हुआ करते थे इंग्लिश मीडियम स्कूलों में बच्चो को पढ़ाना मात्र सपना होता था
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वही बड़ी शान से कहते थे हमारा बच्चा इंग्लिश मीडियम में पढ़ता है धीरे धीरे ऐसे स्कूलों सी संख्या में इज़ाफ़ा होता गया पहले पश्चिमी देशों ने देश के महानगरों में अपने हैड ऑफिसों की नींव रखी उसके पश्चात भारतवर्ष के विभिन्न राज्यो में ब्रांचे खुलती गई
सबसे अहम बात हमारे गुरुकुल / संस्कृत शिक्षा पद्दत्ति को निस्ते नाबूत करने के लिए एक साजिश के तहत गरीब परिवारों के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा के नाम पर मौहल्लों / कस्बो में फ्री ट्यूशन के नाम पर मात्र भाषा हिन्दी से दूर करने का खेल खेला गया
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उसके पश्चात देश के सरकारी कार्यालयों में सभी काम / फार्म अंग्रेजी भाषा मे चलन में लाये गये
वही भारतवर्ष में अंग्रेजी शिक्षा के अभाव का फायदा उठाते हुए मजबूर किया गया कि देश की जनता अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य बनाने की चाहत में इंग्लिश मीडियम शिक्षा पद्दत्ति के मकड़जाल में फंसता गया
फिर कुछ पूंजीपतियों ने शिक्षा के नाम पर दौलत कमाने के नज़रिए से ऐसे विधालयो की दौड़ में शामिल हो गए देख्रते ही देखते महानगरों से शहरों / शहरों से गाँवो में इंग्लिश मीडियम स्कूलों का जाल फैलता गया
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सबसे बड़ा खेल ऐसे स्कूलो में ड्रेस एवम किताबो की आड़ में खेला गया स्कूलो में पश्चिमी पहनावे को महत्व दिया गया , बच्चो घर से लेन ले जाने के नाम पर गाड़ियों का बड़ा बेडा – बड़े बड़े विधालय भवन , 5 स्टार सुविधाओं के नाम पर विधालयो में अभिभावकों को सब्ज़बाग दिखाए गए |
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ड्रेस का रंग डिज़ाइन स्कूल वालो के अनुसार किताबे उनके सिलेबस के अनुसारअनुबंधित प्रतिष्ठानों से खरीदने के लिए अभिभावकों को बाध्य किया गया
जिसका खामियाजा आज सरकारों की निष्क्रियता के चलते देश की जनता भुगत रही है
हमारे देश की सरकारी ने कभी भी भारतीय शिक्षा पद्दत्ति को बढ़ाना देने की नीयत से शिक्षा में कोई सुधार नही किया , जिसका लाभ अपितु इंग्लिश मीडियम स्कूलो को संचालित करने वालो के दोनों हाथों में लड्डू एक और महंगी फीस दुसरीं ओर ड्रेस/ किताबो के % के खेल को खुलकर खेला गया
जिसके दूरगामी परिणाम आज सामने आ रहे है
सरकारों की शिक्षा के प्रति यही उदासिनता रही तो वह दिन दूर नही जब शिक्षा आम नागरिक के बच्चों के लिए महज़ एक सपना बनकर रह जायेगा
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