एलआईसी में अपने स्वामित्व के हिस्से के शेयरों को बाजार में बेचने का मतलब भारत की आर्थिक सम्प्रभुता ख़तरे में डालना -यशपाल आर्य।

एलआईसी में अपने स्वामित्व के हिस्से के शेयरों को बाजार में बेचने का मतलब भारत की आर्थिक सम्प्रभुता ख़तरे में डालना -यशपाल आर्य।
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संवाददाता अतुल अग्रवाल ” हालात-ए-शहर ” हल्द्वानी |

हल्द्वानी | जिस एलआईसी को सभी ‘सभी पूंजियों की जननी’ कहा जाता था, भारतीय जीवन बीमा निगम का निजीकरण मोदी सरकार के निजीकरण के अभियान के सबसे बुरे निर्णयों में से एक होने जा रहा है। 1956 से विकास के झंडे को देश के दूरदराज के तबकों से लेकर सम्पूर्ण ग्रामीण भारत के कोने -कोने तक पहुंचाने वाली संस्था, जिसके पीछे चलकर ही बाकी तमाम वित्तीय योजनाएं और संस्थाएं उन इलाकों तक पहुंची, स्वतंत्रता पश्चात आत्मनिर्भर भारत के जिस स्वप्न को देखा गया और जिसे अमली जामा पहनाने निगम के लाखों कर्मचारियों, अधिकारियों और एजेंटों ने अपना खून पसीना दिया, उस ट्रस्ट को तोड़कर आज एलआईसी को पॉलिसीधारकों के ट्रस्ट से बदलकर शेयरहोल्डर्स के लिए मुनाफे अर्जित करने वाली कंपनी में बदला जा रहा है एलआईसी के निजीकरण का निस्संदेह रूप से सरकार की तरफ से पॉलिसीधारकों को दी जाने वाली सॉवरेन गारंटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा|

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भारतीय जीवन बीमा निगम में आम लोगों के अटूट विश्वास के पीछे यह सॉवरेन गारंटी एक महत्वपूर्ण कारक थी। भारत के अधिकांश हिस्सों में, गरीबों को शायद ही कोई सामाजिक सुरक्षा प्राप्त है। एलआईसी उन्हें कम प्रीमियम पर कई सामाजिक सुरक्षा बीमा कार्यक्रम, आकर्षक सावधि जमा योजनाएं और स्वयं सहायता समूहों के लिए विशेष योजनाएं प्रदान करती रही है। यह तर्क तो और भी हास्यास्पद है कि एलआईसी का आईपीओ लाने से भारतीय जनता को लाभ होगा, क्योंकि शेयर बाजार में खुदरा निवेशक आबादी का लगभग 3% ही हैं। वास्तव में एलआईसी में अपने स्वामित्व के हिस्से के शेयरों को बाजार में बेचने का मतलब केवल और केवल अमीर, कॉर्पोरेट और विदेशी पूंजी को सस्ती कीमत पर एकत्रित सार्वजनिक संपत्ति-धन को उपलब्ध कराना ही है।

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