श्री हरकिशन धियाइये, जिस डिट्ठे सब दुख जाए।

श्री हरकिशन धियाइये, जिस डिट्ठे सब दुख जाए।
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आठवें गुरु मानवता के रहबर श्री गुरु हरिकिशन साहिब जी के प्रकाश पर्व पर गुरुद्वारा रामपुर रोड में
भव्य कीर्तन दरबार सजाया गया।

” HS NEWS ” ATUL AGARWAL , HALDWANI | श्री सुखमनी साहिब के पाठ से आरंभ हुए कीर्तन दरबार मे शाहबाद से आये बीबी कवलजीत कौर एवं साथियों ने
श्री हरिकिशन धियाईये जिस डिठे सब दुख जाए,

सो सतगुरु प्यारा मेरे नाल है आदि गुरबाणी शब्दों का गायन कर संगत को निहाल किया। गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली से आये कथा वाचक ज्ञानी योगेन्द्र सिंघ पारस जी ने गुरु साहिब की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब ८ वर्ष की अल्प आयु में गुरू हर किशन साहिब जी को गुरुगद्दी मिली। गुरु हर राय जी ने १६६१ में गुरु हरकिशन जी को अष्ठम्‌ गुरू के रूप में स्थापित किया। इस बात से नाराज़ होकर गुरु हरिकिशन जी के बड़े भाई बाबा राम राय ने अपने हक दिलाने की शिकायत मुगल बादशाह औरंगजेब से की औऱ इस बावत बादशाह ने बाबा राम राय का पक्ष लेते हुए राजा जय सिंह को गुरू हर किशन जी को उनके समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया। राजा जय सिंह ने अपना संदेशवाहक कीरतपुर भेजकर गुरू को दिल्ली लाने का आदेश दिया। पहले तो गुरू साहिब ने अनिच्छा जाहिर की। परन्तु उनके गुरसिखों एवं राजा जय सिंह के बार-बार आग्रह करने पर वो दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गये।


इसके बाद पंजाब के सभी सामाजिक समूहों ने आकर गुरू साहिब को विदायी दी। उन्होंने गुरू साहिब को अम्बाला के निकट पंजोखरा गांव तक छोड़ा। इस स्थान पर गुरू साहिब ने लोगों को अपने अपने घर वापिस जाने का आदेश दिया। गुरू साहिब अपने परिवारजनों व कुछ सिखों के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुये। परन्तु इस स्थान को छोड़ने से पहले गुरू साहिब ने उस महान ईश्वर प्रदत्त शक्ति का परिचय दिया। लाल चन्द एक हिन्दू साहित्य का प्रखर विद्वान एव आध्यात्मिक पुरुष था जो इस बात से विचलित था कि एक बालक को गुरुपद कैसे दिया जा सकता है। उनके सामर्थ्य पर शंका करते हुए लालचंद ने गुरू साहिब को गीता के श्लोकों का अर्थ करने की चुनौती दी। गुरू साहिब जी ने चुनौती सवीकार की। लालचंद अपने साथ एक गूँगे बहरे निशक्त व अनपढ़ व्यक्ति छज्जु झीवर (पानी लाने का काम करने वाला) को लाया। गुरु जी ने छज्जु को सरोवर में सनान करवाकर बैठाया और उसके सिर पर अपनी छड़ी इंगित कर के उसके मुख से संपूर्ण गीता सार सुनाकर लाल चन्द को हतप्रभ कर दिया। इस स्थान पर आज के समय में एक भव्य गुरुद्वारा सुशोभित है जिसके बारे में लोकमान्यता है कि यहाँ स्नान करके शारीरिक व मानसिक व्याधियों से छुटकारा मिलता है। इसके पश्चात लाल चन्द ने सिख धर्म को अपनाया एवं गुरू साहिब को कुरूक्षेत्र तक छोड़ा। जब गुरू साहिब दिल्ली पहुंचे तो राजा जय सिंह एवं दिल्ली में रहने वाले सिखों ने उनका बड़े ही गर्मजोशी से स्वागत किया। गुरू साहिब को राजा जय सिंह के महल में ठहराया गया। सभी धर्म के लोगों का महल में गुरू साहिब के दर्शन के लिए तांता लग गया।
इसके अलावा भी सिख इतिहास में उनकी बौद्धिक क्षमता को लेकर बहुत सी साखियाँ प्रचलित है।
बहुत ही कम समय में गुरू हर किशन साहिब जी ने सामान्य जनता के साथ अपने मित्रतापूर्ण व्यवहार से राजधानी में लोगों से लोकप्रियता हासिल की। इसी दौरान दिल्ली में हैजा व चेचक जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील थी। जात पात एवं ऊंच नीच को दरकिनार करते हुए गुरू साहिब ने सभी भारतीय जनों की सेवा का अभियान चलाया। खासकर दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनकी इस मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए एवं वो उन्हें बाला प्रीतम कहकर पुकारने लगे। जनभावना एवं परिस्थितियों को देखते हुए औरंगजेब भी उन्हें नहीं छेड़ सका। दिन रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरू साहिब अपने आप भी तेज ज्वर से पीड़ित हो गये। जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अन्त अब निकट है। जब उन्हें अपने उत्तराधिकारी को नाम लेने के लिए कहा, तो उन्हें केवल बाबा बकाला’ का नाम लिया। यह शब्द केवल भविष्य गुरू, गुरू तेगबहादुर साहिब, जो कि पंजाब में ब्यास नदी के किनारे स्थित बकाला गांव में रह रहे थे, के लिए प्रयोग हुआ था।

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अपने अन्त समय में गुरू साहिब सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यू पर रोयेगा नहीं। बल्कि गुरूबाणी में लिखे शबदों को गायेंगे। इस प्रकार बाला प्रीतम चैत सूदी १४ (तीसरा वैसाख) बिक्रम सम्वत १७२१ (३० मार्च १६६४) को धीरे से वाहेगुरू शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योतिजोत समा गये। गुरू गोविन्द साहिब जी ने अपनी श्रद्धाजंलि देते हुए अरदास में दर्ज किया कि

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श्री हरकिशन धियाइये, जिस डिट्ठे सब दुख जाए।

दिल्ली में जिस आवास में वो रहे, वहां एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री बंगला साहिब है। “

गुरमत समागम के साथ गुरु का लंगर अटूट चलता रहा जिसमे सैकड़ों श्रद्धालुओं ने लंगर छका। अध्यक्ष अमरीक सिंह आनंद ने आयी संगत का आभार प्रकट किया। आयोजन में मनप्रीत सिंह सेठी, हरविंदर सिंह आनंद, रंजीत सिंह कोहली, अमरजीत चड्ढा,मनजीत सिंह, सविन्दरपाल सिंघ, हरप्रीत सिंह, भुप्रीत सिंघ, गगनदीप सिंह, इंदरपाल सिंह, अर्जुन, बलवंत सिंह, जसप्रीत चड्ढा, सुरिंदर सिंह, गुरबचन सिंह आदि थे। आयोजन में सिख सेवक जत्था, श्री सुखमनी साहिब सेवा सोसाइटी, आदि संस्थाओं के सेवादारों ने सहयोग किया।

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अपने अन्त समय में गुरू साहिब सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यू पर रोयेगा नहीं। बल्कि गुरूबाणी में लिखे शबदों को गायेंगे। इस प्रकार बाला प्रीतम चैत सूदी १४ (तीसरा वैसाख) बिक्रम सम्वत १७२१ (३० मार्च १६६४) को धीरे से वाहेगुरू शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योतिजोत समा गये। गुरू गोविन्द साहिब जी ने अपनी श्रद्धाजंलि देते हुए अरदास में दर्ज किया कि

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गुरमत समागम के साथ गुरु का लंगर अटूट चलता रहा जिसमे सैकड़ों श्रद्धालुओं ने लंगर छका। अध्यक्ष अमरीक सिंह आनंद ने आयी संगत का आभार प्रकट किया। आयोजन में मनप्रीत सिंह सेठी, हरविंदर सिंह आनंद, रंजीत सिंह कोहली, अमरजीत चड्ढा,मनजीत सिंह, सविन्दरपाल सिंघ, हरप्रीत सिंह, भुप्रीत सिंघ, गगनदीप सिंह, इंदरपाल सिंह, अर्जुन, बलवंत सिंह, जसप्रीत चड्ढा, सुरिंदर सिंह, गुरबचन सिंह आदि थे। आयोजन में सिख सेवक जत्था, श्री सुखमनी साहिब सेवा सोसाइटी, आदि संस्थाओं के सेवादारों ने सहयोग किया।

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