भ्रस्टाचार की भेंट चढ़ा हल्द्वानी गौला पुल दो बार धवस्त ज़िम्मेदार ? >>>VIDEO

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गौलापार पुल का निर्माण करने वाले दिल्ली के ठेकेदार पर 2008 में पुल गिरने पर कार्यवाही न कर अपनों को बचाया का खेल ?
गौलापार पुल का पुनः निर्माण यातायात की दृस्टि से नहीं सुरक्षित वाहन स्वामियों का आरोप

” HS NEWS ” HALDWANI – ATUL AGARWAL | विश्व संसाधन संस्थान के एक सिविल इंजीनियर ने वर्ष 2020 में हल्द्वानी में गौला नदी पर बने प्रमुख पुल के ढहने और ओर ध्यान आकर्षित कराया था | हल्द्वानी रानीबाग पुल के रूप में जाने जाने वाला यह प्रमुख पुल हल्द्वानी को भीमताल ,अल्मोड़ा , रानीखेत ,सितारगंज , खटीमा इन शहरों से जोड़ता है , वही उपग्रह छेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां दिखाते हैं कि गोला नदी पर यह दूसरा पुल कैसे बह गया , जबकि पहला पुल 2008 में बह गया था मूल के डिजाइनरों को यह अनुमान नहीं था कि पुल के पिलर सिर्फ 500 मीटर नीचे ही और अवैध खनन ने नदी का तल  गहरा कर दिया था

वर्ष 2022 में माननीयो के द्वारा अनेको बार गौलापार पुल के निर्माण कार्य के वक़्त लाओलश्कर के साथ निरीक्षण करने के नाम पर लाखो रुपया खर्च किया गया
आज हालात ये है कि यही गौलापार पुल गड्ढो में तब्दील होता जा रहा है , यदि बात कि जाये चुनावी वर्ष था –

जनता को दिखाना था हमने और हमारी सरकार ने इतनी तीव्रगति से किया पुल का निर्माण , परन्तु आज ही गौलापार पुल पहुँचकर देखा गया कि 2022 के चुनावो के मद्देनज़र आनन फानन में आधे अधूरे बने पुल का उद्घाटन किया गया था ,

आज उस वक़्त की स्थिति बदतर हालातो में पहुँच गया है – यदि बात की जाये प्रदेश में मानसून सक्रिय हो गया है पहाड़ो में अत्याधिक बारिश होने से निरंतर प्रदेश की नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है ,

गौलापुल के गड्ढों से गुजरते वाहन किसी बड़े हादसे का इंतज़ार ज़िम्मेदार ?

यदि गौलापार नदी का जल स्तरपुल बढ़ने से गौलापार पुल को कोई छति पहुँचती है ज़िम्मेदार ?

उत्तराखंड में पुलों का गिरना निरंतर जारी है पतझड़ के पत्तों की तरह बिखर रहे हैं प्रदेश में पुल आने वाले वक्त में और कई पुल बिखरने की कगार पर यह खुलासा हुआ है वर्ष 2022 में एक सरकारी सर्वे के अनुसार वर्ष 2022 से पूर्व 5 साल के अंदर 37 पुल जमींदोज हो चुके हैं

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27 पुल कभी भी पतझड़ के पत्तों की तरह बिखर सकते हैं पुल गिरना और भविष्य में रहने वाले पुलों के बारे में पीडब्ल्यूडी विभाग ने अनुमान लगाया और इसकी प्रत्येक जिले की विस्तृत मैपिंग की गई पिथौरागढ़ जिले की बात की जाए 15 पुलों को खो देने वाली सूची में शीर्ष पर है

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राजधानी देहरादून में अकेले 2021 में तीन महत्वपूर्ण पुल पतझड़ के पत्तों की तरह बिखर गए थे केदारनाथ जिले में जून 2021 में गुलाब राय बाईपास के पास से एक महत्वपूर्ण पुल बह गया केदारनाथ को राज्य से जोड़ने वाले दो अन्य पुलों की हालत भी नाजुक है

भारत का सबसे लंबा पुल टिहरी बांध के पास डोबरा पुल के पूरा होने के 9 महीने के अंदर ही दरारें पड़ गई पुल का उद्घाटन वर्ष 2020 के अंत में किया गया था बांध पर यातायात बंद है स्थिति इतनी विकट है कि पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में वास्तविक नियंत्रण रेखा से 65 किलोमीटर दूर स्थित एक वैली पुल 10 जनवरी 2022 को एक नाले में गिर गया हादसा उस समय हुआ जब ओवरलोड ट्रेलर चालक ने उसे पार करने की कोशिश की पास ही स्थित एक अन्य पुल में मरम्मत कर रहे श्रमिकों की चेतावनी के बावजूद चालक पुल के ढहने के कारण बना

सीमा सड़क संगठन के अधिकारी बताते हैं कि पुल के गिरने के बाद एलएसी पर नीलम घाटी के करीब स्थित इलाका पूरी तरह कट गया था रानी पोखरी गांव में स्थित गंगा की सहायक नदी नदी पर बने प्रमुख देहरादून ऋषिकेश का सबसे महत्वपूर्ण हुआ

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पीडब्ल्यूडी इंजीनियर ने एक दशक पहले पुल के उद्घाटन के समय ही यह कहा था कि यह 100 साल से अधिक वर्षों तक चलेगा अफसोस की बात है कि 27 अगस्त 2020 को बिखरकर नीचे आ गया राज्य सरकार ने तुरंत बचाव में भारी बारिश के कारण पुल के गिरने को जिम्मेदार बताया

लेकिन पास के रानीपोखरी गांव में रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि प्रदेश में बड़े पैमाने पर खनन के कारण पुलों का ध्वस्त होना एक बड़ी वजह बताया जा रहा हैं |

एनएचबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के एक प्रमुख को ज्ञानी डॉक्टर एसपी सती बताते हैं कि उत्तराखंड सरकार के अधिकारी इन आपदाओं के लिए भारी बारिश और बादल फटने को जिम्मेदार ठहराते हैं परंतु सत्य है की अत्याधिक सड़क निर्माण के कारण हमारी असंख्य नदियों में मलवा डाला जा रहा है इससे उनकी मात्रा और घनत्व में वृद्धि हुई अवैध बालू खनन से स्थिति और खराब हो गई ,दो अन्य पुल जो 2020 में ढह गए थे सहस्त्रधारा में मालदेवता तक जाने वाली सॉन्ग नदी पर पुल जो देहरा को रायपुर से जोड़ने वाला था